संस्कृत शास्त्र में भी विशेष कर ज्योतिष शास्त्र में जिसे होरा शास्त्र भी कहा जाता है। 12 वर्ष होते हैं।
विशेष जानकारी - ज्योतिष शास्त्र को दो वर्गों में बांटा गया है। पहला फलित ज्योतिष, दूसरा सिद्धांत ज्योतिष।
फलित ज्योतिष - में कुंडली आदि को देखकर फलित अर्थात् उसका फल यानी की कुंडली का अवलोकन करके उसका (जातक) भविष्य बताया जाता है। जातक की कुंडली देख कर भविष्यादि के बारे में बताने वाला शास्त्र जिसे हम फलित ज्ञान भी कहते हैं।
सिद्धांत ज्योतिष- इसके विपरीत सिद्धांत ज्योतिष में सिद्धांत का अर्थ है- फार्मूला, गणित का महत्व। सिद्धांत ज्योतिष से ही कुंडली ग्रहचक्र, ग्रहों की चाल, समय, तिथि काल आदि के बारे में जाना या बताया जाता है। सिद्धांत ज्योतिष को गणित ज्योतिष में कहते हैं। क्योंकि इसमें गणितीय काम ज्यादा होता है।
संस्कृत में कुल 12 वर्ष है बहुत ही आसान हैं ये बारह वर्ष- 1. चैत्रः, 2. वैशाख:, 3. ज्येष्ठः, 4. आषाढ़: 5. श्रावण:, 6. भाद्रपदः 7. अश्विन: 8. कार्तिकः 9. मार्गशीर्षः 10. पौष: 11. माघ: 12. फाल्गुन: |
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