Praise of Private School Story in Hindi, प्राइबेट स्कूल की वाह-वाही

प्राइबेट स्कूल की वाह-वाही कल्पनात्मक रचना / Praise of Private School Story in Hindi 2020 By HBB

इस कहानी के सूत्र-धार एवं लेखक डॉ. सुशील सेमवाल है- इस कहाँनी के सभी पात्र व घटनाए काल्पनिक है अगर इसका सम्बंध किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति के साथ पाया जाता है तथा किसी व्यक्ति विशेष व घटना के साथ कोई संबन्ध होता है,  तो यह मात्र एक सन्योग कह्लायेगा। यह एक पूर्णता कल्पनात्मक रचना है। इसका सम्बंध किसी व्यक्ति, जाति-विशेष से नहीं है।

Praise of Private School Story in Hindi

ये आधुनिकी बनियों के अय्यासियों का सबसे बड़ा अड्डा है। जिसमें मैनेजमेंट नाम की जोंक अध्यापक का साल भर खून चूसती है। अध्यापकों को वेतन के नामपर कुछ नमक सुंघाया जाता है। शिक्षकों का खून इनकी फाइलों में कैद होता है। जिसे कभी भी खून पसीने की मेहनत के साथ बहाया जा सकता है।

इन स्कूलों में कई तरह के लोग होते हैं।

पहले वो जो मैनेजमेंट चरण चुंबन होते हैं। इनके पास खून नहीं भी हो तो चल जाता है। इनका पानी से भी काम चल जाता है। इसलिए वे लोग बात बात में पानी फैला देते हैं।

दूसरे होते हैं एंटी मैनेजमेंट, इनके पास न खून होता है न पानीइनको नौकरी जाने का बहुत खतरा रहता है। इसलिए वे थोड़ा चिड़चिड़े और अकूड़ु टाइप होते हैं। इनका खून चारों और से सुखा दिया जाता है। इनमें कुछ मंत्री के भतीजे, गुंडे, ऊंची सिफारिश परस्त लोग होते हैं। जिनसे मैनेजमेंट भय खाता है। इसलिए भी इनकी जॉब पक्की होती है।

तीसरी प्रिंसिपल चरण चुम्बन गैंग, ये सबसे खतरनाक गैंग है पूरे भारत वर्ष में ये सरकारी, अर्ध सरकारी, प्राइबेट, संस्थागत, लोकल, सभी संस्थानों में पाए जाते हैं। इनकी पहचान है कि ये सबसे ज़्यादा बड़े भारी वाले विद्वान होते हैं। इनकी चाल में अकड़ और गर्दन हमेशा आसमान को ताकती रहती है। सारे विद्वान प्रिसिंपल गैंग में ही होते हैं। इनकी एक ओर विशेषता है ये हर विषय के ज्ञाता और वाचाल किस्म के होते हैं। इसलिए इनसे सभी डरते हैं।

चौथे एंटी प्रिसिंपल- ये सभी को गाली देते रहते हैं ये इनका विशेष क्षेत्र है। क्योंकि इनके पास इसके अलावा कुछ भी नहीं होता है। इनके पास सबके नुस्ख निकालने का समय रहता है। और ये मैनेजमेंट के पिट्ठू टाइप होते हैं। सारी रिपोर्ट मैनेजमेंट को तत्काल मक्खन लगाकर पेस करने की इनकी कला विश्व विख्यात है। दुनिया का सबसे दुःखी प्राणी मेरी दृष्टि में यही होगा सायद। जो कभी हँसता नहीं है मुँह फुलाये ही यहाँ वहां भ्रमण करता रहता है।

पांचवे मेहनती परस्त- इनका काम सिर्फ इतना होता हे की कौन ज्यादा मेहनत कर रहा हे उसपे कड़ी नज़र रखो और उसकी सारी मेहनत अपने नाम करके सारा क्रेडिट खुद ले लो ताकि वो और मेहनत करते रहे, उसे ऐसे ही नोचते रहें। मानो भगवान ने इन्हें सारा धरा धाम थमा दिया हो।

इनके बसका कुछ होता जाता हे नहीं बस मिमियाते रहते है सुबह श्याम ताकि इनका मिमियाना इनके चमचो के कानों मैं जाय और वे चमचे ये बात आगे तक पहुँचाय ताकि हेड को पता चले की महानुभव ने बहुत बड़ा पहाड़ तोड़ दिया हे।


इसी कड़ी में एक और आदम खोर टाइप के होते हे जो अपने न्यूतन हर साथियों को इसप्रकार काम दे कर निचोड़ते हे मानो सारी पृथ्वी का भार सिर्फ उसी का हो बाकि सब- अंगने पे बाबा दुआरे पे माँ... करने आये हों। एक इसने काम करा करा कर सबका सारा खून चूस लिया और एक तुमने किसी को खून चूसने लायक रखा ही नहीं ताकि आपके काम पे कोई असर न पढ़े। एक ये मेंहगाई और दूसरी तरफ के खून चूसने की लड़ाई। वाह! प्रभु आपने क्या सोच के इंसान बनाये और ये क्या बन गये।


न को भी पढ़ सकते है- 


मैनेजमेंट इन सभी के कंधों पर बन्दूक रखकर तोप गोले बरसाता रहता है। मैनजमेंट के लिए शाम की शराब और मुर्गा - सुर्गा की व्यवस्था का भार भी कर्मचारियों के कंधों पर होता है। ये बड़ी बड़ी कारों में सफर करते हैं। इनके लड़के बड़े स्कूलों में पढ़ते हैं। जिस स्कूल को ये चलाते हैं। उसकी हालत इन्हें अच्छे से पता होती है। ऊँची दुकान फीके पकवान कहावत इनको ही चरितार्थ कर लिखी गई है।

इन संस्थानों में आपको छला जाता है, ये आप अब समझ रहे होंगे। क्योंकि ऐसी विषम परिस्थितियों में भी ये लोग सभी से झूटी शिक्षा की फीस वसूल रहे हैं। आजकल ये बहुत ही एक्टिव और पॉजिटिव बातें करते नजर आ रहे हैं। और घर मे फोन तक भी घुमा दिया करते है। बच्चो के भविष्य के वांदे दिया करते हैं। {आंदे वांदे कांदे} लोगों के खाने के लाले पड़े हैं।

इनको शिक्षा की पड़ी है, शिक्षा भी वो जिसका सर न पूंछ। अभी अगली शताब्दी तक आप इनसे ठगे जाओगे क्योंकि एक शताब्दी का ये ब्रह्मा जी से लिखवाकर लाये हैं। ये भारत का सबसे अच्छा व्यवसाय है, जिसमें ढेला खर्च नहीं होता और हर महीने करोड़ों की लागत। स्कूल के अध्यक्ष तक के बर्थडे के पैंसे अभिभावकों से वशूले जाते हैं। जिसमें शाम को शराब और चखना होता है।  

Dr. sushil semwal

लेखक डॉ. सुशील सेमवाल

ये लेख किसी शिक्षक की आत्मा को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं लिखा गया है यह एक रचना धर्मिता है जिसमे कवि काल्पनिक विषयों पर लिख रहा है
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