शिवाशिव स्वरूपा कहानी | Shiva hindi story

पृथ्वी आगमन दृश्य पर शिवाशिव शिव स्वरूपा की कहानी

शिवाशिव शिव-स्वरूपा एक दिन भ्रमण करते करते हुए अपने लोक से आगे बढ़ गए और एक प्रदेश में जा पहुंचे। जहाँ उन्होंने देखा कि वहां हर तरफ में शरीर रुपी जीव तथा मानुष रुपी जीव वेदना सहन कर रहे हैं और दूसरों को भी वेदना दे रहे हैं। चाहे किसी रूप में ही क्यों ना हो।


ये सब देख शिवाशिव स्तब्ध रह गए तथा सोचा कि इनका उद्धार या उनका दुख - दूर कैसे किया जा सके। फिर उनके मन में ख्याल आया कि क्यों न सभी जीवाजीव को यहां परिपूर्ण बना दिया जाए। जिससे कि वह एक दूसरे से ईर्ष्या, द्वेष या कोई परेशानी महसूस न करें और दुख- वेदना न रहें। उनकी सोच के अनुसार ही वहां सभी परिपूर्ण बन गया।

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कुछ समय तक सब कुछ ठीक- ठाक चलता है, परंतु कुछ समय बीत जाने पर शिवाशिव पुनः भ्रमण हेतु वहां पुनः पहुंचे तथा उन्हें पहले की ही तरह देख स्तब्ध रह गए। उन्हें समझते देर नहीं लगी कि यह सब कुछ सही- सही वो कर तो सकते हैं। परंतु उन्हें संभाल कर प्रयोग करना नहीं सिखा सकते। 

क्योंकि जीवरूपी जीवी अपने सामने वाले को अधिक सुखादि देख ईर्ष्या, द्वेष भावनादि उत्पन्न कर ही लेता है न चाहते हुए भी, वह अपने मन आदि की स्थिति कुछ समय वश में कर तो लेता है, परंतु पूर्ण रूप से उसे परिपूर्ण नहीं कर सकता। जिसके चलते वह अपना सर्वस्व दांव पर लगा कर यहां - वहां भटकता रहता है और अंततोगत्वा अपने पतन की ओर ही अग्रसर होता रहता है। 


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जिसे वह समय पश्चात परिवर्तित करता रहता है। अतः समयानुसार अच्छे स्वरूप में परिवर्तित होना अत्यावश्यक है क्योंकि पथ भ्रमित अवश्य हो सकता है। परंतु अगर पथिक अग्रसर दृढ़- निश्चय वाला हो तो उसे कोई भी शक्ति भ्रमित अथवा पथभ्रष्ट नहीं कर सकती।

इसलिए जीवी को अपना मार्ग पथिक के समान निर्मित्त करना चाहिए जिससे वह पूर्ण से परिपूर्ण की दिशा में अग्रसर रहें और उसका शुभाष्य शुभाशय मार्ग प्रशस्त  रहें….    

धन्यवाद ! 

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