Best 4 Friends True Funny Story Based on College Life in Hindi -
आज मैं सच्चे और पक्के चार दोस्तों की कहानी लेकर आया हूं, ये कहानी किसी को ठेस पहुँचाने के उद्देश्य से नहीं लिखी गयी है। ये कवि की स्वतंत्र और कल्पनात्मक कृति है।चलिये कहानी प्रारम्भ करते हैं- साथियों! ये बात है उन दिनों की जब हम लोग कॉलेज में पहली बार मिले थे और सब एक दूसरे को देख के खूब हँसे थे क्यूंकि नाम ही कुछ इस प्रकार से थे- पहला बाघा दूसरा गंजा तीसरा सुसु और चौथा है नूली।
मैं थोडा - थोडा इनके बारे में बता देता हूँ, इनमें से जो पहला था वो है बाघा।
बाघा- जैसे नाम से ही पता चल रहा है बाघा मतलब बाघ जैसा- पर घंटा वो बाघ जैसा था, वो था एकदम लुल्ल और चुल्ल। पर एक बात बता देता हूँ दिल का अच्छा था और दोस्तों के लिए हमेशा तैयार रहता था।लेकिन वो थोडा सा डरपोक था लड़कियों के मामले में, उसे मूंछों वाली लड़कियां बहुत भाती थी और हर तीसरी लड़की से उसे प्यार हो जाता था। लेकिन किसी लड़की को कभी कुछ नहीं बोल पाया बेचारा।
बाघा बकैती करने में नंबर एक था, उसको दो घूंट अमृत की पिला दो फिर भाई साहब जो गुलाटी मारते थे क्या कहना।
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हाँ लेकिन हमारे सामने अपने नाम बाघा की तरह ही उछलता रहता था ।मानो की सारी धरती की समस्या इसके माथे पे आ गयी हो बस उसकी बकलोली सुन लो और थोड़ा झूठी मूठी तारीफ कर दो वो खुश और हर जगह फिट हो जाता था, ये तो खासियत थी साले की और भी बहुत कुछ है पर सभी कुछ बता पाना संभव नहीं।
अब बात करते हैं दूसरे नंबर वाले की जिसका नाम है गंजा।
गंजा- जैसा की नाम से ही पता चल गया होगा आपको की उसके सर पे बाल नहीं हैं। बेचारे ने बहुत कोशिश की बाल उगाने की पर सफल नहीं हो पाया गंजा।गंजे की भी रोचक बात बताता हूँ- उसको किसी से भी प्यार हो जाता था। बस शर्त है लड़की होनी चाहिए- काली, पिली, नीली, कोई सी भी हो बस।
वो साला भी एकदम दूसरे नम्बर का लुल्ल आदमी था क्योंकि उसने भी लड़की के चक्कर में दिल्ली, बिहार पता नहीं कहाँ-कहाँ भ्रमण किया, उसे उन लड़कियों से जल्दी प्यार हो जाता था, जो उससे बात प्रारंभ करती हैं और वो जी भर के लड़कियों पे खर्च करता था।
साले ने हमें एक चाय तक नहीं पिलायी और लड़कियों के लिए एक ब्रेड पकोडे के 150 रुपये देता था, इम्प्रेस करने के लिये और सबसे बड़ी बात लड़कियां इम्प्रेस भी हुई।
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वो कहते है न जब भाग्य में लिखें हों घोड़े तो कहाँ से खाओगे पकोड़े।
इम्प्रेस के बाद भाई की फट जाती थी आखिर कार उसको अपना उजड़ा चमन जो बचाना होता था।लेकिन जब वो अपना उजड़ा चमन दिखाता था तो सब मना कर देती थी। और उसके सब सपने चकना चूर हो जाते थे। फिर गाना गाता था- छन से जो टूटे कोई सपना जग सुना सुना लागे.....
उसका जग आज भी बीरान पड़ा हुआ है फिर भी हार नहीं मानते भाई साहब इसके चक्कर में गंजे बेचारे के खूब पैसे खर्च हुये।
अब उसने बालों की खेती उगा ली है शायद अब उसकी बात बन जाय।
चलो अब बात करते हैं तीसरे नंबर की जिसका नाम है- सुसु।
सुसु- नाम की तरह ही ये बात बात पे सुसु कर देता था। लेकिन इसकी भी एक खासियत है, जो बोलता है वो करता है और बाकी नहीं करता है।वो गुप्पी मैं सुप्पी करता था, उसका दिल भी आशिक फैंक था। हर काली लड़की से उसे प्यार हो जाता था, क्योंकि वो भी काला था।
काले लोगों की एक खासियत होती है और वो है- आशिक मिजाज। गाँव की क्या उसने शहर की लड़कियों को भी नहीं छोड़ा, सब पे ट्राय करता था वा दिल निचोड़ के रख देता था।
उसने अपना दिल इतनी बार निचोड़ा की बेचारे को निमोनिया हो गया। भाई साहब तब भी बाज नहीं आये अपनी हरकतों से पर दिल का सच्चा आशिक था हमारा सुसु भाई। साला काला था पर गोरों को टक्कर देता था रोज पाउडर लगा के आ जाता था।
भाई साहब ने रो रो के पुरे गाँव और शहर में तहलका मचा रखा था। और वो जब भी राजमा चावल खाता था तो उसके पेट मैं गैस हो जाती थी। बेचारे को खिचड़ी खाने की आदत जो थी। सुसु बेचारा भाई हमारा।
चलो अब बात करते हैं लास्ट चौथे नंबर वाले नूली की।
नूली- जैसा की नाम से ही पता चल रहा होगा नूली अर्थात्- न ली हो जिसने कभी उसे कहते है नूली। अब तो पता चल गया होगा नाम का अर्थ। ये भाई साहब सब भाइयों में दिल के बड़े शर्मीले और चमकदार और बड़े चिकने टाइप के थे।
इनकी चिकनाहट दूर से ही लड़कियों को आकर्षित करती रहती थी। पर इन्होंने कभी लड़कियों पे ध्यान दिया ही नहीं।इस वजह से इन्हें कई कष्ट भुगतने पड़े और भुगते भी भाई नूली ने।
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ये जल्दी ही दूसरों पे भरोसा कर लेते थे, इस चक्कर में एक लड़की इनसे प्यार का नकली ड्रामा करके पूरे 50 हजार का चुना लगा के चली गयी और ये भाई साहब देखते रह गये।
50 हजार लेने के बाद उस लड़की का फ़ोन आया लगभग दो ढाई साल के बाद और उसने कहा सुनो में आपको एक बात बताती हूँ- कि आप मामा बन गये, वो भाई साहब को मामा बना के चली गयी।
लड़कियों को देखकर नूली महाराज के छक्के छूट जाते थे शर्मिंदगी से। इसकी वजह से इन्हें बड़े ही कष्ट भोगने पड़े। और इन्होंने सहर्ष भोगा भी। दोस्तों की हमेशा सहायता करते थे, कभी किसी को निराश नहीं किया।
हाँ- एक दो बकलोल है जो साले कुकुर मुत्ते की तरह हैं जब धूप खिले तो बाहर आ जाएं और धूप न निकले तो ये भी नहीं निकलते थे। मानो ये ही लहसुन की दुकान खोल के बैठे हों।
बकैती राजा भोर पाया सुबह सुबह सब गोंडा लाया...।
ये थी सच्चे दोस्तों की सच्ची कॉलेज की फनी कहानी- बाघा सुसु गंजा नूली की जुबानी।
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2 Comments
अबे में भी तो थी साले बभूल गया मज़ा आया 😊😊☺👍👍👌👌
ReplyDeleteJi yaad nahi rha agli wali Kahani main apka jikar zarur hoga.
DeleteHi,
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