हरिद्वार कुंभ महापर्व 2021, कुंभ मेला 2021 जानकारी
Maha kumbh mela haridwar 2021 |
कुम्भ पर्व चार स्थलों पर पवित्र नदियों के किनारे मनाया जाता है -
कुंभपर्व हर 3 साल बाद बारी-बारी करके चार स्थानों पर मनाया जाता है। पहला उत्तर प्रदेश में प्रयागराज। जहां गंगा, यमुना, सरस्वती का संगम स्थल है। दूसरा हरिद्वार जो उत्तराखंड में स्थित है। यहां पर देवभूमि उत्तराखंड के पहाड़ों को चीरती हुई निर्झर कल-कल ध्वनि से बहती मां गंगा नदी है। तीसरा मध्य प्रदेश क्षेत्र में उज्जैन। उज्जैन में जो नदी है उसे पाताल गंगा अथवा शिप्रा नदी के नाम से भी जानते हैं। चौथा महाराष्ट्र में स्थित नासिक। इस स्थल पर बहती नदी गोदावरी के नाम से जानी जाती है। इन चार स्थलों पर कुंभ पर्व में स्नान का विशेष पुण्य फल बताए गए हैं। हर 12 साल में पूर्ण कुंभ होता है, जहां लाखों करोड़ों श्रद्धालु आकर स्नान कर पुण्य प्राप्त करते हैं।
क्यों मनाया जाता है कुंभ पर चार स्थानों पर ?
पौराणिक कथा अनुसार इसे समुद्र मंथन के नाम से जाना जाता है। जिसमें कुंभ अर्थात कलश में भगवान धन्वंतरि समुद्र के गर्भ से अमृत लेकर बाहर आते हैं। अमृत पीकर अमरत्त्व प्राप्त होता है। उसी कुंभ कलश को प्राप्त करने की इच्छा से देवताओं और असुरों के बीच लड़ाई होती है। इस लड़ाई के दौरान अमृत की चार बूंदे चार स्थानों पर पड़ती हैं। इसीलिए इन चार पवित्र स्थानों में कुंभ का आयोजन होता है।
Haridwar Kumbh Mela Snan Dates 2021 |
कुंभ का विशेष अर्थ दार्शनिक मतेन -
ऐसा माना जाता है कुंभ सृष्टि के समस्त धर्म/संस्कृति पुण्यात्माओं का पवित्र संगम है। आध्यात्मिक चेतना कुंभ है। क्योंकि चेतना शब्द वास्तविक में पुरुष में चेतनत्त्व है। अर्थात इस मानव शरीर में जो चेतन तत्त्व है जिसे हम आत्मा, ब्रह्म, तेजपुंज आदि नामों से जानते हैं।
जब तक शरीर रूपी कुंभ में अमृत रूपी चेतनत्त्व रहता है। तभी तक शरीर का तेज बना रहता है। मतलब यह हुआ कि शरीर से जब चेतन अर्थात आत्मा निकल उस परम तेजोमय पुंज में विलीन हो जाती है। तब यह क्षण भंगुर शरीर तेज रहित हो जाता है और हमारे मरणोपरांत शरीर के पांच तत्व/अवयव पांचों तत्वों में स्वतः ही विलीन हो जाते हैं। इसी चक्र को सृष्टि चक्र भी कहा जाता है।
क्योंकि जन्म और मृत्यु शाश्वत है और यही अटल सत्य है। मृत्यु से पहले कुंभ पर्व में स्नान कर पुण्य अर्जित किया जाता है। कुंभ स्नान से अपनी चेतना/आत्मा शुद्ध होती है और आपको सन्मार्ग की ओर प्रेरित करती है। सन्मार्ग ही सत्मार्ग है और सत्मार्ग ही आप को सदोगति की और अग्रसर कर अमरत्त्व की और ले जाती है। अतः चेतना शुद्धिकरणार्थं कुंभ-स्नानमवस्यकम् इति।
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